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मैया जब मैं घर से चलूँ / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मैया जब मैं घर से चलूँ बुलामें घर में ग्वालिन मोय॥
अचक हाथ कौ झालौ देकै, मीठी बोलें देवर कह कैं।
निधरक है जाँय साँकर देके॥

दोहा- झपट उतारें काछनी, मुरली लेंय छिनाय।
मैं बालक ये धींगरी, मेरी कहा बसाय॥
आपहु नाचैं मोय नचावें, कहा बताऊँ तोय॥ 1॥
मैं भोरौ ये चतुर गुजरिया, एक दिन लेगई पकरि उँगरिया,
फूटी-सी याकी राम कुठरिया।

दोहा- धरी मटुकिया मो निकट, माखन की तत्काल।
माखन दूँगी घनों सौ, चींटी बीनौ लाल॥
मैंने याकी चींटी बीनी, ये पति संग गई सोय॥ 2॥
एक दिना पनघट पे मैया, मैं बैठौएक दु्रम की छैंया,
ढिंग बैठ्यो बलदाऊ भैया।

दोहा- लै पहुँची वहाँ गागरी, रिपटौ याकौ पाम।
मेरे गोहन पड़ गई, धक्का दीनों श्याम॥
गुलचा दे दे लाल किये, मैं ठाड़ौ रह्यौ रोय॥ 3॥
तेरे मोंह पै करें बढ़ाई, बाहर निकसत करैं बुराई,
ऐसी ब्रज की ढीठ लुगाई।

दोहा- इनकौ पतियारौ करे, मैं झूठौ ये शाह।
चोर नाम मेरौ धरौ, होन न दिंगी ब्याह॥
मोते इनने ऐसी कीनी, जैसी करै न कोय॥ 4॥