कविता पुरानी / राकेश खंडेलवाल
धड़कनों की ताल पर गाने लगी है ज़िन्दगानी
याद मुझको आ रही है फिर कोई कविता पुरानी
धूप में डूबे हुए कुछ तितलियों के पंख कोमल
पर्वतों को ले रहीं आगोश में चंचल घटायें
झील को दर्पण बना कर खिलखिलाते चंद बादल
प्रीत की धुन पर थिरकती वादियों में आ हवायें
लिख रहे हैं भोज पत्रों पर नई फिर से कहानी
याद मुझको आ रही है फिर कोई कविता पुरानी
वॄक्ष पर आकर उतरते इन्द्रधनु्षों की कतारें
गुनगुनाती रागिनी से रंग सा भरती दुपहरी
लाज के सिन्दूर में डूबी हुई दुल्हन प्रतीची
और रजनी चाँदनी की ओढ़कर चूनर रुपहरी
भोर की अँगड़ाईयों से हो रहा नभ आसमानी
याद मुझको आ रही है फिर कोई कविता पुरानी
पतझड़ी संदेशवाहक बाँटता सा पत्र सबको
स्वर्ण में लिपटा हुआ संदेश का विस्तार सारा
खेलती पछुआ अकेली शाख की सूनी गली में
राह पर नजरें टिकाये भोर का अंतिम सितारा
कर रही ऊषा क्षितिज पर, रश्मियों संग बागवानी
याद मुझको आ रही है फिर कोई कविता पुरानी
आरिजों पर दूब के हैं प्रीत चुम्बन शबनमों के
फूल ने ओढ़ी हुई है धूप की चूनर सुनहरी
हंस मोती बीनते हैं ताल की गहराईयों से
पेड़ की फुनगी बिछाये एक गौरैया मसहरी
कह रही नव, नित्य गाथा प्रकॄति इनकी जुबानी
याद मुझको आ रही है फिर कोई कविता पुरानी