भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अजनबी / मुइसेर येनिया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:38, 6 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुइसेर येनिया |अनुवादक=मणि मोहन |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारिश हो रही है
वो अजनबी जो मुझसे मिलने आता है

उसके नाजुक क़दम
ज़मीन पर पड़ रहे हैं

- वर्तमान की तरह एक फ़ासले से -

बारिश हो रही है
कोई अदृश्य
मेरी खिड़की पर दस्तक दे रहा है

ओ मेरे दिल यहीं रुके रहो
आसमान में लटके
भरे हुए बादल की तरह

जिसने अभी-अभी बरसना सीखा है ।