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धूप की नदी / कुमार रवींद्र
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ले जाओ दूर तक
अँधेरों में
छोटी यह धूप की नदी
रंग-भरे सपनों के
इस पर
जो उजियाले फेले हैं
ले जाओ इन्हें वहाँ
साँसों के रंग
जहाँ मैले हैं
सारी तैयारी है
चलने की
किरणों से नाव है लदी
चन्दन के जंगल के पार
एक सूना अँधियारा है
वहीँ कहीं
वह उजड़ी घाटी है
जिस पर संध्याओं की धारा है
उनको दुलराने के लिए
सहो जितनी भी
पीर है बदी