वसंत मे अभिसार / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
एलथि पाहुन वसंत
कत' छथि हमर कंत !
अभि-स्वागत लेल नयना पसारि बैसलहुँ
सिनेह उपटल की मोने मे मारि बैसलहुँ ...
भाव भौतिक लग क्षीण
धनक सेज कोना नीन !
हुनक प्रेम छनि... व्यापार
सिनेह लागनि... उधार
काढ़ल कांचन सँ आँचर सम्हारि बैसलहुँ ...
एहि अभिसारक अर्थ
अर्थयुग मे अछि व्यर्थ
रति अर्पण बेकार
रमा पसरलि बजार
हिया माने ने तैयो थथमारि बैसलहुँ ...
यज्ञ सिया बिनु हेतै
कनक मूरति एतै
राधा वृन्दावन नाच
कृष्ण गीता केर बाँच
पौरुख धर्मक लग अपना के हारि बैसलहुँ ...
आर्य रक्षहि वैराग
धम्म कांता केर त्याग
ध्रुव वचनक ने मोल
मौन ! अर्चनाक बोल
कर्म साधक पथ नोर सँ बहारि बैसलहुँ ...
नारी एक्के दिशि ध्यान
राखब सावित्री मान
कत' प्रियतम अकान
वसंत चढ़लै अवसान
श्रीङ्ग सरसक आवरण केँ उतारि बैसलहुँ ...