भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षरण / राग तेलंग

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 19 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>जब दा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब दातून बनाई गई तो
अलस्सुबह पृथ्वी झुकी बहुत क्षैतिज होते हुए
इस तरह एक नीम के पेड़ ने स्वाद लिया मनुष्य का

जब अपनी बाहों में लिए हुए आंख के तारे को उछाला ऊपर की ओर तो
कुछ और ऊपर उठा आसमान अपने समस्त ग्रह-नक्षत्रों के साथ
कि इस तरह टकराने से बचा आदमी का बच्चा

जब गीली मिट्टी का लौंदा चढ़ा चाक पर तो
सारी अक्षीय गतियां एकत्र होकर देखने लगीं वह नाच जिससे
गढ़े गए प्यास बुझाने के उपकरण

जब सूर्य की किरणों ने प्रवेश किया छप्पर के रंध्रों के रास्ते
लगा एक-एक चिकत्ता रोषनी का अनमोल है
और एक दिन ज़रूर दूर हो सकता है अंधेरा सचमुच

इस इरादे के साथ
एक दिन एक इच्छा ने किया प्रवेष
आधुनिकता से लबरेज़ शहर में

वहां न पेड़,न अंतरिक्ष, न प्रतिद्वंद्विताविहीन गतियां

सब कुछ एक-दूसरे के विरूद्ध
यहां तक कि मनुष्य भी

यहीं से शुरू हुआ था
मनुष्यता का क्षरण।