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कमाल की औरतें ३१ / शैलजा पाठक
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हवा तेज़ भाग रही है
मन के अंधेरे रास्तों पर
एक उजली छत पर
एक अकेली लड़की
गा रही है
गोल-गोल घूमती हुई
एक गीत
आंधी पानी दोष बुढिय़ा भरोस...
चांद पृथ्वी सब घूम रहे हैं गोल-गोल
लड़की आज भी घूम रही है
अपनी धुरी पर अकेली
जि़दगी घर बचे जदोजहद
दुनिया देख रही है
अब मन की अंधेरी सड़क पर
तेज आंधी है...डरावनी आवाज़ें
आहटों से तेज सांसें हैं।