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मैं जब भी लिखूंगी प्रेम ८ / शैलजा पाठक

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सबसे भीड़ भरे चौराहे पर एक रोज़
मिलना चाहती है लड़की अपने प्रेमी से
और चूम लेना चाहती है उसके होंठ ये कह कर-
डरती नही हैं लड़कियां
कस लेंगी तुमको अपनी बांहों में
तुम छूटना चाहो भी न
तो सहज न होगा तुम्हारे लिए

लड़कियां भीड़ से नहीं डरती
न डरती हैं Œयार से
लेकिन वो जानती हैं
सुकून के पलों को सहेजने की जिम्मेदारी उनकी है

वो बुलाती हैं तुम्हें बगीचे के उस निर्जन बेंच पर
एक बार मिलने के लिए
जबकि इस एकांत से ƒघबराती हैं लड़कियां
अकेले में भीड़ और भीड़ में अकेली लड़कियां
भरोसा करना चाहती हैं तुम पर
कि तुम्हारे Œप्यार में किया गया
इनका कोई भी अनोखा प्रयोग तुम्हारी खातिर था

एक बार एक लड़की उछालना चाहती है
भीड़ भरे ट्रेन में एक चुम्बन
जिसे पकड़ते हुए
तुम लडख़ड़ाओ, संभल जाओ, मुस्कराओ
और ट्रेन की भीड़
तुम्हारी आंखों में खो जाए

तुम अकेले रहो कुछ देर
मेरी मिठास के साथ
और मैं पलट जाऊं
अपनी आंखों में एक गुलाबी रंग लिए

एक बार
भीड़ वाले चौराहे पर
मैं मिलना चाहती हूं तुम्हें।