भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे द्वारे बैठे हैं / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 24 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल वालों की बस्ती में दिल के मारे बैठे हैं
हमने सबका दिल जीता अपना हारे बैठे हैं

होगी रात अमावस की लेकिन कितनी रौशन है,
तेरी यादों के जुगनू साथ हमारे बैठे हैं.

मेरी आँखों के घर के भीतर आकर देखो तो,
अब तक जाने कितने ही ख्वाब कुँवारे बैठे हैं.

जिससे कल तुम गुज़रे थे उस रस्ते पर लौटोगे,
उस पर आँख बिछाये हम बाँह पसारे बैठे हैं.

कहने को सब अपने हैं लेकिन अपना कौन यहाँ,
लेकर कितनी उम्मीदें लेकर तेरे द्वारे बैठे हैं.