भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जैसे जब से तारा देखा / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:50, 16 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय }} क्...)
क्या दिया-लिया?
जैसे
जब तारा देखा
सद्यःउदित
--शुक्र, स्वाति, लुब्धक--
कभी क्षण-भर
यह बिसर गया
मैं मिट्टी हूँ;
जब से प्यार किया,
जब भी उभरा यह बोध
कि तुम प्रिय हो--
सद्यःसाक्षात् हुआ--
सहसा
देने के अहंकार
पाने की ईहा से
होने के अपनेपन
(एकाकीपन!) से
उबर गया।
जब-जब यों भूला,
धुल कर मंज कर
एकाकी से एक हुआ।
जिया।