कैसे छाँटा जाये / कमलेश द्विवेदी

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:14, 25 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हर खाई को पाटा जाये.
हर इक का ग़म बाँटा जाये.

वो ग़लती हम भी कर सकते,
बच्चों को क्यों डाँटा जाये.

सोच मुनाफ़ा औरों का तो,
तेरा भी सब घाटा जाये.

शाखायें ही काटें-छांटें,
पेड़ न जड़ से काटा जाये.

आओ हम सब मिलकर बैठें,
बस्ती से सन्नाटा जाये.

इक डाली का होकर भी क्या,
फूलों के सँग काँटा जाये.

जबसे घर टूटा है तबसे,
क्या-क्या टूटा-टाटा जाये.
 
माँ बीमार पड़ी है, बेटा
करने सैर-सपाटा जाये.

अच्छे और बुरे इक जैसे,
सोचो कैसे छाँटा जाये.

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.