Last modified on 27 दिसम्बर 2015, at 11:39

कभी कभी झूठ भी बोलता हूँ / अवतार एनगिल

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 27 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>वह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह कमसिन तो है
पर सुन्दर नहीं !

संवरने की कामना
उसे ब्यूटी पार्लर ले जाती है
पर घर लौटते ही
मेरे सामने खड़ी हो जाती है
क्षण भर के लिए ही सही
वह मूर्खा
विष्व सुन्दरी हो जाती है

दर्पण हूँ तो क्या
कभी-कभी
अपनी अंतरंग सखी का मन रखने के लिये
झूठ भी बोल लेता हूँ ।