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ग्रहों की कुण्डली / प्रदीप मिश्र

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ग्रहों की कुण्डली
 
शनि महाराज बहुत हो चुका तुम्हारा आतंक
कुछ दिन के लिए बंद कर लो अपनी आंखें
मंगल बंद करो मार-काट और युद्ध
अब बरदाश्त से बाहर हो रहा है
सूर्य तुम्हारे अस्त होने से
अब हमें कोई फर्क नहीं पड़ता
चंद्र तुम्हारे मन की चांदनी और रात का खेल
समझ में आ गया है हमें
बुध अब तुम्हारे धन्धे का समय नहीं रहा
शुक्र तुम्हारी सुख–सुविधाएं संकट में हैं
गुरू अपने चरणों को खुद साफ़ कर लो
हमने चरण पखारना बन्द कर दिया है

पंडित जी अब आप अपनी भूमिका बदलें
बनाएं ग्रहों की कुण्डलियाँ
रचें मनुष्य स्तुति और स्त्रोत्र
हवन करें अंधविश्वासों और रूढ़ियों का
ताकि सकल ब्रह्माण्ड में बनी रहे सुख-शांति।