भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन मिळ्यां मेळो / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 15 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह= मंडाण / नी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेळै अर भीड़ में
फरक रात-दिन रो।
भीड़
मन बायरी
मगज बायरी
जिणरो कोनीं हुवै
कोई दीन-धरम।
मेळै रै नांव सूं
घेर-घुमेर नाचण ढूकै
मन रो मोरियो
मेळै मिस
हियै हरख
मूंडै मुळक
अर आंख्यां चमक
सतरंगी सुपनां री।
मन मिळ्यां
हुवै मेळो।