अंतिम महारास / दृश्य 3 / कुमार रवींद्र
दृश्य - तीन
[मथुरा नगरी : किशोर कृष्ण-बलराम मुख्य द्वार से कंस द्वारा महोत्सव के लिए निर्मित कराई गई रंगशाला में प्रवेश करते हैं | भव्य सुसज्जित रंगशाला- उत्सव का वातावरण | एक ओर सबसे ऊँचे मंच पर महाराज कंस सिंहासनासीन हैं | चारों ओर विविध प्रकार के आसनों की व्यवस्था की गई है | क्रीडांगन के एक छोर पर आम प्रजाजन के बैठने की गई है | कृष्ण-बलराम उसी ओर जाकर वहाँ एक ओर बैठ जाते हैं | नेपथ्य से कथावाचन का स्वर उभरता है]
कथा वाचन - आये अक्रूर संग
कल जो थे गोकुल के ग्वाले
आज हुए मथुरा के जननायक -
सभी ओर चर्चा है उनकी ही |
कहते हैं कृष्ण या कन्हैया जिसे
उसके सम्मोहन से बँधी हुई आम प्रजा
कैसी है उमड़ रही |
राजा के रक्षक भी रोक नहीं पायेंगे
जन-जन की उमड़ी इस बाढ़ को |
राजा की दासी थी कुब्जा
सुनते हैं
कान्हा के छूते ही हुई महासुन्दरी |
चमत्कार -
कान्हा ने सिर्फ उसे 'राधा' कह टेरा था
और हुई पल भर में वह मुग्धा |
राजा का जो पगला हाथी था
मदोन्मत्त कुवलयापीड -
उत्पीड़क सत्ता का था प्रतीक -
अभी-अभी ढेर हुआ
मार्ग में कान्हा के हाथों ही |
यज्ञभूमि में
जो था अजेय चाप महादेवा का
उसको तो कल ही भंग किया था
कन्हैया ने |
अब देखें आगे क्या होता है |
राजा के छल-प्रपंच हैं अनंत -
पार कोई भी
अब तक उनको कर पाया नहीं |
पर कान्हा तो अद्भुत है -
उसने तो बचपन से ही अचरज विरचे हैं |
[कुवलयापीड के विशाल दाँतों को कंधों पर रखे कृष्ण-बलराम प्रजा की भीड़ के साथ रंगशाला में प्रवेश कर चुके हैं | कृष्ण चंचल-सम्मोहक दृष्टि से सभी ओर देखते हैं | राजोत्सव के लिए उपस्थित सभी गणमान्य नागरिकों-नागरियों की दृष्टि उस आकर्षक किशोर पर टिकी रह जाती है | कृष्ण के चेहरे पर एक मोहन मुस्कान है | बलराम अपेक्षाकृत अधिक शांत और गंभीर लगते हैं | एक ओर एक विशाल लौह पींजरे में वसुदेव-देवकी बंदियों के रूप में बंधन में जकड़े हुए खड़े हैं | कृष्ण उस ओर भी अपनी सम्मोहन मुस्कान के साथ देखते हैं | सर्वोच्च आसन पर बैठे कंस के पास अक्रूर और मल्लराज तोशल भी अन्य विशिष्ट अभ्यागतों के साथ बैठे हैं | तभी एक ओर से तुरही-नाद होता है -साथ में उद्घोषणा होती है]
उद्घोषणा - महाबली महाराज कंस की प्रजाओ !
आज का दिवस यह है अति पुनीत -
राजा का जन्मदिन पचासवाँ
और आज के ही दिन, याद करें
महाबली ने
मथुरा नगरी को आपकी
अपने सुशासन का मान दिया था
अब से ठीक ढाई दशक पहले |
पूरे पखवारे के उत्सव का
आज है समापन-पर्व |
देखेंगे आप सभी
अतुलनीय मल्ल-युद्ध -
महाबली स्वयं कुशल मल्ल हैं -
सर्वश्रेष्ठ
और इस अपौरुषेय क्रीडा के संपोषक |
मुष्टिक-चाणूर की शक्ति और कौशल के साक्षी हैं
देश औ' विदेश के अनेक मल्ल |
उनके आर्त्तनाद यहाँ बार-बार गूँजे हैं
इसी रंगशाला में |
[सिंहासन से कंस इशारा करता है | कई युवा-किशोर मल्ल अखाड़े में उतरकर कुश्ती के अनूठे दाँव-पेंच दिखाते हैं | फिर कंस के पास बैठे हुए चाणूर -मुष्टिक अपने उत्तरीय और अधोवस्त्र उतारकर केवल लँगोट पहने मल्लभूमि में उतरते हैं | युवा मल्ल उन्हें भूमिष्ठ नमन करते हैं| सुसज्जित नव-कन्याएँ उनके माथे पर सगुन का तिलक और उनकी आरती करती हैं | दोनों आपस में मल्लविद्या के कई अनूठे दाँव प्रदर्शित करते हैं - आश्चर्यजनक गति और अद्भुत कौशल है उनकी हर क्रिया में | वे दोनों अधेड़ावस्था के हैं, पर उनके शरीर की गठन और चपलता युवाओं को भी मत करती है | कंस के इशारे पर फिर उद्घोषणा होती है]
उद्घोषणा - ये दोनों महाबली मल्ल
रहे वर्षों से हैं अजेय |
इस लंबी-चौड़ी रंगशाला में
कितने ही युवजन हैं मथुरा के
और कई बाहर के भी ...
मुष्टिक-चाणूर भी विदेशी हैं
वासी हैं वे सुदूर पर्वत सुमेरु के
किन्तु अब तो हैं...सभी भांति माथुर ये |
आये थे विश्वजयी होने का गर्व लिये-
मथुरा के सभी मल्ल तब इनसे हारे थे |
आखिर मथुरेश ने ही इनका
बल-विक्रम नाथा था अद्भुत बल-कौशल से |
तब से ये...
इस मथुरा नगरी के गौरव हैं |
मल्ल ये अलौकिक हैं -
राजा के परम मित्र |
है कोई युवा यहाँ
जो इनके कौशल को झेल सके |
स्वागत है उसका
आये वह आगे और ...
अपने मल्ल-कौशल का परिचय दे ...
[चारों ओर सन्नाटा छा जाता है | तभी विदेशियों की दीर्घा से एक सुंदर गौरवर्ण लंबा-चौड़ा बलशाली युवक म्ल्ल्भूमि में उतरता है | मुष्टिक से उसके दांव-पेंच होते हैं थोड़ी देर | फिर मुष्टिक बिजली की चपलता से उसके चेहरे और एनी कोमल अंगों पर अपनी वज्रमुष्टि से लगातार मारक
प्रहार करता है | इन मल्ल-विद्या के नियमों के नितांत विरुद्ध प्रहारों से युवक बुरी तरह आहत हो जाता है | तभी चाणूर उसे हवा में घुमाकर धरती पर पटक देता है | युवक के आर्त्त्नादों से पूरी रंगभूमि गूँज जाती है | फिर वह तड़पकर प्राणहीन हो जाता है | उसकी निष्प्राण क्षत-विक्षत देह को चाकर निर्ममता से घसीटते हुए क्रिदंग्न से बाहर ले जाते हैं | चारों ओर मृत्यु का सन्नाटा छ जाता हे | सभी के चेहरों पर एक महा-आतंक का भाव | तभी कृष्ण और बलराम अपने उत्तरीयों को उतारकर धोती का कांछा बाँधे म्ल्ल्भूमि में उतर आते हैं | चाणूर-मुष्टिक, जो महाराज कंस की ओर उन्मुख हो अपनी-अपनी भुजा उठाये महाराज का जयघोष कर रहे थे, इन दोनों किशोरों को एक-साथ बिजली की गति से उतरते देखकर चौंक पड़ते हैं, फिर कुटिल अट्टहास करते हैं | कंस के चेहरे पर भी कुटिल हास की रेखा उभर आती है | वसुदेव-देवकी के चेहरों पर गहरी चिंता का भाव छा जाता है | प्रजाजन भी व्यग्र-उद्वेलित दिखते हैं | किन्तु जब तक लोग कुछ सोच-समझ सकें या कोई प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें, कृष्ण चाणूर से और बलराम मुष्टिक से उलझ चुके हैं | साँस रोके लोग इस अद्भुत मल्ल-युद्ध को देखते हैं | कुछ क्षणों में ही चाणूर कृष्ण की चपलता के कारण थका दिखने लगता है | और उसके बाद ही आँख झपकते ही दोनों दैत्याकार मल्ल चीत्कार करते हुए धरती पर आ गिरते हैं | चाणूर को कृष्ण आकाश में उछालकर चक्कर देकर धरती पर पटक देते हैं और मुष्टिक बलराम के बज्र मुष्टि-प्रहारों से बुरी तरह आहत हो जाता है | एक अनहोनी होने के भाव से पहले तो एकदम सन्नाटा छा जाता है और फिर एक कोलाहल व्याप जाता है | उसके ऊपर कंस का मेघ-गर्जन स्वर सुनाई देता है]
कंस - मल्लराज तोशल !
आदेश दें अपने सभी मल्लों को
एक साथ टूट पड़ें इन दोनों दुष्टों पर -
घात करें इनका
फिर गोकुल के नन्द और ग्वालों का |
पूरी बृजभूमि को उजाड़ दें |
[तोशल जोर से हुंकार भरता है | इस बँधे हुए इशारे पर सरे ही युवा-किशोर मल्ल जो अभी तक मल्लभूमि के सीमांत पर खड़े क्रीड़ाओं को देख रहे थे, एक साथ अपनी-अपनी गदाएँ लिए कृष्ण और बलराम पर टूट पड़ते हैं | तोशल स्वयं भी एक महा-मुगदर लिए भीषण हुंकार भरता हुआ आक्रमण करने के लिए अखाड़े में कूद पड़ता है | कृष्ण तोशल से युद्ध करते हैं और शीघ्र ही उसे धराशायी कर देते हैं | उसके गिरते ही बलराम के विशाल शरीर से जूझते हुए अन्य पहलवान भागने का उपक्रम करते हैं, किन्तु कृष्ण-बलराम के आघातों से वे बच नहीं पाते और जल्दी ही ढेर हो जाते हैं | कंस पहले तो चकित-विस्मित-हतप्रभ इस चमत्कार को देखता रह जाता है | फिर गदा उठाकर स्वयं नीचे आने का उपक्रम करता है | तभी कृष्ण बिजली की गति से उछलकर उसके मंच पर चढ़ जाते हैं और कंस के खड़े होने से पूर्व ही उसे केश पकड़कर घसीटते हुए मंच से नीचे कूद पड़ते हैं | सब कुछ इतनी तेजी से होता है कि लोग समझ ही नहीं पाते क्या हो रहा है | एक क्षण के उपरांत वे यही देख पाते हैं कि महाबली आततायी कंस, जिसके आतंक से वे वर्षों-वर्षों थर्राते रहे, कृष्ण के मुष्टिका-प्रहारों से आहत धरती पर पड़ा है| कुछ पलों की छटपटाहट के बाद कंस का शरीर निष्क्रिय-शांत हो जाता है| कंस-वध की इस चमत्कारपूर्ण घटना को स्वीकारने में कुछ समय लगता है सभी को| और फिर शत-शत कंठों से श्रीकृष्ण की जय के नारे गूँजने लगते हैं | अक्रूर तुरंत स्थिति पर नियन्त्रण करने के लिए प्रहरियों को उद्यत कर देते हैं | वसुदेव-देवकी को बंधन-मुक्त करते हैं | कृष्ण मंच पर खड़े होकर सभी को नमन करते हैं]