भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद की तैयारी / अर्पण कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:21, 27 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्पण कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सैंकड़ों चेहरों से
अटी-पड़ी आँखों को
पानी से धोकर रिक्त किया है
साबुन से रगड़-रगड़ कर
चेहरे से दिनभर की
खीझ और ऊब को
बड़ी और महान
शख्सियतों के समक्ष
सुबह से लेकर शाम
तक की जानेवाली
अपनी मिमियाहट को और
उनके आगे अक्सरहाँ
शुरू हो जानेवाली
अपनी हकलाहट को
हटाया है
इस जीवन में कभी पूरा न हो
सकनेवाले अपने सपनों के
गर्द-गुबार को झाड़कर
अपने शरीर को हल्का किया है

नए-पुराने सारे मुखौटों को
एक किनारे कर बिस्तर में
धँस गया हूँ
...............................
अब मुझे सो जाना चाहिए
एक उद्वेग-रहित नींद की
पूरी तैयारी
कर ली है मैंने।