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गुज़र जाएगी शाम तकरार में / गौतम राजरिशी
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गुज़र जाएगी शाम तकरार में
चलो ! चल के बैठो भी अब कार में
अरे ! फ़ब रही है ये साड़ी बहुत
खफ़ा आईने पर हो बेकार में
तुम्हें देखकर चाँद छुप क्या गया
फ़साना बनेगा कल अख़बार में
न परदा ही सरका, न खिड़की खुली
ठनी थी गली और दीवार में
अजब हैंग-ओवर है सूरज पे आज
ये बैठा था कल चाँदनी-बार में
दिनों बाद मिस-कॉल तेरा मिला
तो भीगा हूँ सावन की बौछार में
मिले चंद फोटो कपिल देव के
कि बचपन निकल आया सेलार में
खिली धूप में ज़ुल्फ़ खोले है तू
कि ज्यूँ मिक्स 'तोड़ी' हो 'मल्हार' में
भला-सा था 'गौतम', था शायर ज़हीन
कहे अंट-शंट अब वो अश'आर में