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कुछ कसैली-सी मखमली बातें / गौतम राजरिशी
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कुछ कसैली-सी मखमली बातें
फिर सियासत की हैं चली बातें
करवटें साँप लेते हैं अंदर
और ऊपर से संदली बातें
कर गयीं मेरे शह्र को घायल
सरफ़िरी और बावली बातें
बात से बात जब निकलती हैं
फिर मचाती हैं खलबली बातें
मैंने तो बस तुम्हें बताया था
कैसे पहुँची गली-गली बातें
रूह तक भी सुलग उठे अपनी
हाय, उनकी ये दिलजली बातें
लब थे ख़ामोश फिर भी होती रहीं
शोख आँखों से मनचली बातें
(समावर्तन जुलाई 2014 "रेखांकित", गुफ़्तगू अप्रैल-जून 2013)