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जबसे मुझको तूने छुआ है / गौतम राजरिशी

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जब से मुझको तू ने छुआ है
रातें पूनम दिन गिरुआ है

ऐसा इश्क़ का बीज पड़ा के
नस-नस में पनपा महुआ है

तू जो गया तो अहसासों का
मन अब इक खाली बटुआ है

टूटा है तो दर्द भी होगा
दिल क्या शीशम या सखुआ है ?

तेरे चेहरे की रंगत से
मेरा हर मौसम फगुआ है

फेर ली तुमने नज़रें जब से
बहने लगी तब से पछुआ है

हँस के तू ने देख लिया तो
जग ये सारा हँसता हुआ है





(वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009)