भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जय किसकी / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 9 मार्च 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नारे थे इतने ऊँचे
और सघन इतने
कि वह काँप गया
शब्द स्पष्ट हुए
- भारत माता की जय -
वह सुस्थिर हुआ अपने लोग हैं
जिसकी जय के लिए कटिबद्ध ये
उसी का आत्मज मैं . . .
पर पलक झपकते डण्डे
हाथों में थमें झण्डों के बरस गए
चिथड़ा चिथड़ा हुआ रंग सफेद हरा
केसरिया गडमड हुआ एक ही रंग में . . .
निपट सूनी स्याह खोह में उतरते
उसने समझना चाहा
यह किसकी मां की जय पुकारते हैं।