भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आलिंगन / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:09, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} आलिंगनः खत की आखिरी पंक्ति<br> आलिंगनः मै...)
आलिंगनः खत की आखिरी पंक्ति
आलिंगनः मैंने पढ़ा, पहली पंक्ति की तरह
भाल के ऐन ऊपर सिरे के बीचो- बीच
सुलग उठा एक सिरा नीन्द का
आलिंगनः दर्द जाग उठा
आलिंगनः नीन्द बुदबुदाई
आलिंगनः मौत मुस्कुराई
नसनस चटख उठी
मैं खिल उठी कनेर की कली बन