भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुरु जी गेलौ / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=तुक्त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दीया, दीया जरले जो
फूल-फोॅर तों फरले जो
गाय घास तों चरले जो
दूध यहाँ सब धरले जो
चक्की दाना दरले जो
कोठी-कोठा भरले जो
गुरु जी आबौ, डरले जो
गेलौ गुरु, ससरले जो।