भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र }} तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है<br...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है।

नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं,
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है।

पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।