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मेला आरो केला / धनन्जय मिश्र

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नूनू कहिनें कानै छैं!
गोड़ोॅ केॅ जाय छानै छैं!
बोलें, तोरा की होलौ?
के तोरा कुछुवो बोलौ?

चाचू हम्में मेला जैबै
हिन्नें-हुन्नें खुब्बे घुमबै
चढ़बै जाय कठघोड़वा पर
ऊपर-नीचे सर-सर-सर।

घुमतें-घुमतें हुवौं निडर
कहियौ ने फिर लागतै डर
यही लेॅ हम्में कानैं छी
खायलेॅ केला मांगै छी।

चाचू कहै नै जहियोॅ मेला
होय छै खाली वहाँ झमेला
भीड़ोॅ में बस रेलम पेला
धक्का-धुक्की-खेलम खेला
वैमें जैभौ नूनू हेराय
कानभा तोहें माय गे माय
यही लेॅ नै जहियोॅ मेला
खाय लेॅ देबौं तोरा केला।