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होली / कैलाश झा ‘किंकर’

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रंगाबऽ धोती-कुर्ता केश।
कि होली लेलऽ छौं संदेश॥

घर में भौजी भिंगल जाय
कि अंगिया-साड़ी भिंगल जाय
मगन मन मोहन लाले-लाल
कि फगुआ-फगुआ सौंसे देश।

इलेक्शन फगुआ बनलऽ जाय
सगा पर बन्दूक तनलऽ जाय
रंगऽ में प्रेम-रंग अनमोल
मिटाबऽ एकरा सँ हर द्वेष।

सुधारऽ काका अप्पन चाल
न खींचऽ जात-धरम के खाल
सिनेहिया व्यर्थे मारल जाय
मिटाबऽ राग-रंग सँ क्लेश।

कि कौआ नेने जाय छौं कान
गगन नै देखऽ अप्पन कान
दबारऽ घर सँ भ्रम के भूत
भटकल जीवन के राह शेष।