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हवा / वंशी माहेश्वरी
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मृत्यु की उदासी में
हवा
भटकती है
निस्संग
एकाग्र।
प्रकृति की काँपती
थरथराती लय में
मृत्यु में जन्म की संपदा
छोड़कर
चक्कर काटती है निरन्तर।
हवा
अनन्त एकान्त में
आकाश से बहुत नीचे
ठहर जाती है-कृतघ्न।