भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्रिस्टोफर ओकिग्‍बो

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:32, 15 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=क्रिस्टोफर ओकिग्‍बो |अनुवादक=कु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे पीठ पीछे आ चुका है चंद्रमा
एक.दूसरे पर झुके
हम दो देवदारों के मध्य

चढते चंद्रमा के साथ
हमारा प्यार
हमारे आदिम एकांत में वास कर रहा है

अब‍ छायाएं हैं हम
लिपटे एक.दूसरे से
शून्य को चूमती
छायाएं केवल।