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बुड्ढ़े की मृत्यु / रघुवीर सहाय

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बुड्ढ़ा मर गया
और मरते दम तक उसे यह शर्म रही
कि वह पैरगाड़ी पे उचक कर नहीं चढ़ पाया
जिन्दगी में बाएँ जूते को पिछले पहिये की कीली पर जमा
हाथों से सैंडिल थाम
कईं पैंगे मारता था
और जब साइकिल चल पड़ती थी
तो गद्दी पर तैर कर बैठ जाता था
जैसे कोई देवदूत घाटियों से उठा और मेघों से होकर
पहाड़ों में जा पहुँचा।