भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी अपनी व्‍यवस्‍था के खोखल से / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:48, 17 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अखबार छापते रहते हैं खबरें
भटके हुए तेंदुए और बाघिन के
पूरी फौज मय पुलिस अधिकारियों के
भागती है उनके पीछे
वे बचाना चाहते हैं उसके पंजों से
नागरिकों को
उधर झुंड के झुंड लोग
हो रहे आदमखोर
उनके लिए कुछ नहीं है
ना पिंजडे ना कालापानी ना अभयारण्‍य
उनकी आबादी को फिलहाल
कोई खतरा नहीं
अखबार उनकी खबरें छापते रहेंगे
तब तक जब तक वे अखबार के दफ्तरों में
घुस कर खाने नहीं लगेंगे खबर के सौदागरों को
जब तक वे थानों में घुसकर खाने नहीं लगेंगे
तथाकथित जांबाज सिपाहियों को
जब तक वे इस व्‍यवस्‍था की रेंड नहीं मार देंगे
वे बढते रहेंगे अबाध
और अपनी अपनी व्‍यवस्‍था के खोखल में
मग्‍न तमाम लोग
देखते रहेंगे
अपने स्‍यापों की सुर्खियां बनते ।