बुझौवल- खण्ड-5 / अमरेन्द्र
41
भरी देह पर माँस कहीं नै
बाहर हड्डी, भीतर खून
पढ़ै में ओकरोॅ माथोॅ भारी
बस लिक्खै के एक्के धून ।
-कलम
42
काठोॅ के देह-गोड़
लोहोॅ के नाक
जीहा छै आरी के
तालू दू फाँक ।
-कलम
43
आँख, नाक, जी, सब्भे कुछ छै
हाड़ो देह में, खूनो ठो
अलग करै, जोड़ी भी लै छै
धड़ आरो मूड़ी दोनों ठो
जन्मे सें बांॅगोॅ छै हेन्होॅ
लोहोॅ, काठ, शिला छै जेहनोॅ ।
-कलम
44
अजब विधाता केरोॅ खेल
खाली मुँह-कानोॅ के मेल
दाल-भात कुछुवो नै खाय छै
तरकारी सब निगली जाय छै ।
-लोहिया
45
धरती पर पानी, आकासोॅ में आग
गरजै छै मेघो भी गड़-गड़ के राग ।
-हुक्का
46
नै देखलेॅ होब्हैं तोंय
हेनोॅ मटकुइयाँ
पानी के बदला में
आग आरो घुइयाँ ।
-चीलम
47
दूधोॅ सें दू चम्मच भरलोॅ
दूध में तैरै एक-एक मक्खी
मिली उड़ावै सौ-सौ पंखा
तहियो उड़ै नै, गेलै थक्की ।
-आँख आरो पिपनी
48
दू नौका में एक-एक तिरिया
नाव चलावै सालौ सें
नाव गढ़ैया में फँसलोॅ छै
निकलै नै, निकाल्हौ सें ।
-आँख
49
सिर पर टोकरी, मुँह में खन्ती
गहना सें लागै कुलवन्ती
पाट-पटोरी सब कीमती छै
गाछ खोदै छै, मतछिमती छै ।
-कठखोद्दी
50
एक डायन के दाँत पचास
जेकरोॅ सखी सुखैलोॅ काठ
डायन हेनोॅ कि निगली गेलै
सखिये केरोॅ बेटा साठ ।
-आरी