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बुझौवल- खण्ड-10 / अमरेन्द्र

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91
दिन भर सूतै फोंफी मारी
जगै रात भर वन-बहियार
चोर देखी केॅ बिल में घूसै
हेनोॅ तेॅ ऊ पहरेदार
-उल्लू
92
बिन छिलके के मटरोॅ दाना
सालो साल छँटै नै छै
दुसरा केॅ वें काटी राखै
आपने मतर कटै नै छै ।
-दाँत
93
देहोॅ में काटोॅ छै
पेटोॅ में आँख
माँस बड़ी मिट्ठोॅ छै
छीलोॅ जों पाँख ।
-लीची
94
खुल्ला मूँ से झाँकै नाक
सौंसे गाँव में पारै हाँक
माथोॅ पीछू बान्हलोॅ खोपोॅ
चूल नै छै कि तेल केॅ चोपोॅ ।
-लाउडस्पीकर
95
वन-वन दर-दर खाली भटकै
दुसरा के हिस्सा केॅ झटकै
घर ढुकथें सबकेॅ धमकावै
ऊ नर के बाबा कहलावै
आबेॅ ओकरोॅ नाम बताव
नामे में छिपलोॅ छै भाव ।
-बानर (बा-नर)
96
दूए धौनोॅ दूए हाथो
जन्मे सें पर टेंगड़ी चार
कमरो, पेटो, पीठियो ठो छै
पर देखोॅ नी मूड़िये पार ।
-कुर्सी
97
एक कमर सें सटलोॅ-सटलोॅ
दू मूड़ी, दू हाथ
बच्चां-खच्चां कुछ नै बूझै
बन्दर बूझै बात ।
-डमरू
98
मूड़िये ठो नीचेॅ छै, गोड़े ठो ऊपर
चुटकी के तालोॅ पर नाँचै छै सर-सर
नै तेॅ ऊ नरिये ही, नै तेॅ ऊ भूत
निगलै छै रूई केॅ उगलै छै सूत ।
-तकली
99
स्त्राीलिंग होय धान केॅ कूटै
पुलिंग होय धोती पर टूटै
अमरेन्दर के बूझ पिहानी
नै तेॅ धौल जमैतौ नानी ।
-ढेका (ढेकी)
100
सौंसे ठो देह, मुँह कारोॅ कजरोटी
माथा में चूल नै ढेका में चोटी ।
-कौआ
101
गरमी देखी झरकी ओकरा
रात्हौं-दिन्हौं खूब नहाय
ओकर्हौ पर पंखा डोलाबै
आदमी देखै जाय विलाय
बोल, छिकै ऊ कोॅ न परी
जों खाना छौ झोलबरी ।
-मछली