भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डरा आदमी / उमा शंकर सिंह परमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:31, 23 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा शंकर सिंह परमार |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
डरी सड़कें
डरा आदमी
हवाएँ बता रहीं है लाशों का पता
कल के सियार
शेर में तब्दील
ख़ूनी जबड़ों में दबाकर
विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने का प्रमाणपत्र
ख़ुद को संविधान का
रक्षक घोषित कर चुकें हैं
डरा आदमी
नहीं समझ पा रहा
ईमानदार, जनप्रिय, विकासपुरुष,
होने के शब्दशास्त्र में
फूहड़ता की पराकाष्ठा है