भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह हार नहीं / उमा शंकर सिंह परमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:33, 23 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा शंकर सिंह परमार |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्दन झुकाकर
गर्दन बचा सकते हो
बन्द मुट्ठी खोलकर
हाथ जोड़ सकते हो
जुलूस के साथ
खड़े होकर क़दमताल कर सकते हो

लेकिन यह मत कहना
मैं हार चूका हूँ रण

यह हार नहीं
तमाम हत्याओं के पक्ष में
खड़ी नैतिकता
का अघोषित पतन है
मनुष्यता का
कायरतापूर्ण आत्मसमर्पण है