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यह हार नहीं / उमा शंकर सिंह परमार
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गर्दन झुकाकर
गर्दन बचा सकते हो
बन्द मुट्ठी खोलकर
हाथ जोड़ सकते हो
जुलूस के साथ
खड़े होकर क़दमताल कर सकते हो
लेकिन यह मत कहना
मैं हार चूका हूँ रण
यह हार नहीं
तमाम हत्याओं के पक्ष में
खड़ी नैतिकता
का अघोषित पतन है
मनुष्यता का
कायरतापूर्ण आत्मसमर्पण है