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प्रेम / उमा शंकर सिंह परमार
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तुम्हारे जिस्म
और मेरे जिस्म
की ख़्वाहिशों के बीच
मजबूत दीवार है प्रेम
तुम्हारी पवित्रता
मेरी असफलताओं का
अकाट्य तर्क है प्रेम
कोर्ट के आदेश से
नहीं तय की गई हैं
हमारे प्रेम की मर्यादाएँ
सज़ायाफ़्ता सपनो की तरह
बाज़ार के हवालात में
क़ैद कर दिया गया है प्रेम
दूरियाँ ही तो हैं
कोई विप्लव नहीं
दूरियाँ
जीवन के साज़ पर
साँसों की उँगलियों के
चलते रहने का संकेत हैं
प्रिये ! प्रतीक्षा करो
एक दिन जल्द ही
बेक़सूर क़ैदी की तरह
सरेआम सूली पर
चढ़ाया जाएगा प्रेम