भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार हृदय के हेनोॅ बोलै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:23, 25 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्यार हृदय के हेनोॅ बोलै
पुरबैया नीमी तर डोलै।
चुप छै ठार, धरा भी चुपचुप
कुछ छै तेॅ बस फुसका-फुसकी ।
आँख बहुत छै चंचल सबके
के छुपलोॅ छै मन में घुसकी ।
मन के बात मन्हैं जानै छै
कैन्हें कोय्यो देह टटोलै !
पुरबैया नीमी तर डोलै ।
पानी आर हवौ सेॅ पतला
चन्दन गंधोॅ सें चिकनैलोॅ
किसिम-किसिम के कुसुम रसोॅ के
जी भर पीलें, बहुत अघैलोॅ
आय हृदय में वही प्रेम ठो
अमृत केरोॅ रस केॅ धोलै ।
पुरबैया नीमी तर बोलै ।