तोरोॅ रूप शरत के छवि रं / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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तोरोॅ रूप शरत के छवि रं

कुन्तल कारोॅ मेघ घनेरोॅ
जों सावन आ भादोॅ केरोॅ
जादू-टोना के ही फेरोॅ
वैमें मांग लगै छै रवि रं ।

मन जों विचारै, मन लटियावै
दूर-दूर जे, खिंचलोॅ आवै
सपना सें ओकरा नहलावै
कामदेव रं तोरोॅ कुन्तल
रूप तोरोॅ तेॅ कविता-कवि रं ।

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