भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाली नै शृंगार करोॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:28, 25 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खाली नै शृंगार करोॅ
रात छेकै कि प्यार करोॅ ।

ऐना में की रूप निहारोॅ
दिल देखोॅ, जों देखेॅ पारोॅ
गल्ला पर जेबर के बदला
मन में उठतें भाव निहारोॅ
तोरा कोय पुकारी रहलोॅ
चुप ई की छोॅ, तहूँ पुकारोॅ
सूनोॅ-सूनोॅ केॅ; कलरव सें
भरलोॅ रं संसार करोॅ
खाली नै शृंगार करोॅ ।

रात जना साँपै रं ससरै
कुछ सोची केॅ मन ई सिहरै
कखनी चाँद गिरी ई जैतै
काम-धजा रं जे कि फहरै
बिजली रं आती केॅ छिटकोॅ
हमरोॅ मन में बादल छहरै
ठूंठ-ठूंठ नै लागै जीवन
पात-पात कचनार करोॅ ।