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खाली नै शृंगार करोॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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खाली नै शृंगार करोॅ
रात छेकै कि प्यार करोॅ ।

ऐना में की रूप निहारोॅ
दिल देखोॅ, जों देखेॅ पारोॅ
गल्ला पर जेबर के बदला
मन में उठतें भाव निहारोॅ
तोरा कोय पुकारी रहलोॅ
चुप ई की छोॅ, तहूँ पुकारोॅ
सूनोॅ-सूनोॅ केॅ; कलरव सें
भरलोॅ रं संसार करोॅ
खाली नै शृंगार करोॅ ।

रात जना साँपै रं ससरै
कुछ सोची केॅ मन ई सिहरै
कखनी चाँद गिरी ई जैतै
काम-धजा रं जे कि फहरै
बिजली रं आती केॅ छिटकोॅ
हमरोॅ मन में बादल छहरै
ठूंठ-ठूंठ नै लागै जीवन
पात-पात कचनार करोॅ ।