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भाव उठावै तोरोॅ हेला / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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भाव उठावै तोरोॅ हेला,
मोॅन लगै छै जेना मेला ।
तोरोॅ कटि के हिलवोॅ-डुलवोॅ
कंचन केरोॅ लता मात छै
जेना कि मेघोॅ के संग में
चंचल बिजुरी रहे माथ छै,
केना भार लता पर ठहरै
कवि सोची केॅ पागल-पागल
एक पहेली रं बूझोॅ
दीप-शिखा पर बादल बादल
हुन्नें पैर बढ़ौं नै तोरोॅ
हिन्नें चाहत केरोॅ रेला ।
केकरा कर सें करौ इशारा
सकल सृष्टि में हलचल-हलचल,
जेठोॅ केरोॅ घोर उमस में
जन्नें देखोॅ शतदल-शतदल ।
आँख तोरोॅ चुप रहलौ पर भी
कत्तेॅ-कत्तेॅ की-की बोलै
एक साथ तन आरो मन में
माहुर साथें अमरित घोलै !
हेनोॅ की छौं तोरा में जे
हमरोॅ मन छै जूही-बेला ।