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जइहैं रे बदरिवा सजन क नगरिया / बैकुण्ठ बिहारी

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आन बिकै छै शान बिकै छै, चौराहा पर मान बिकै छै
गरम यहाँ बाजार हवस के, पैसा पर इन्सान बिकै छै

दू दिल दोनों पार खड़ा छै, बीचोॅ में दीवार खड़ा छै
सीथ सिनूर कुॅवारॉे सपना, लोभीं ठेकेदार खड़ा छै
बुक फाटै छै शहनाई के, दू दिल के अरमान बिकै छै

प्रीत खरीदोॅ मीत खरीदोॅ, सागे दर में गीत खरीदोॅ
लठ कीनोॅ भैंसो सब तोरे, हारियो केॅ तों जीत खरीदोॅ
कानूम तेॅ छै निअॅक्खा, दूअॅक्खा के ईमान बिकै छै

रंग खरींदोॅ रूप खरीदोॅ, बड़का-बड़का भूप खरीदोॅ
हंसोॅ के माथा पर उल्लू, डिगरी भर-भर सूप खरीदोॅ
राती के हर बात खरीदोॅ, सबसें सस्ता जान बिकै छै

दरबोॅ सें दरबार खरीदोॅ, ब्रत पूजा त्योहार खरीदोॅ
चानी के चक्का चलवावोॅ, सगरे जय जयकार खरीदोॅ
लोक आरो परलोक खरीदोॅ, कलियूग मंे भगवान बिकै छै