भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक मुरख कासी जी चललै / छोटे लाल मंडल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:33, 28 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छोटे लाल मंडल |अनुवादक= |संग्रह=हस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक मुरख कासी जी चललै,
जीवन मुक्ति के पावैले,
नै वे जानै रेले कैन्हो छै,
नै वे टिकट कटावै लै।
एक सज्जन से पुछी लेलकै,
रेलो के डिव्वा कैन्हों छै,
हौ कारो कारो धूवाँ उड़ाय छै,
स्टेशन पर अखनी खांड़ी छै।
की वें मानतै फानियै गेलै,
कुरूवा कांधा पै लपकी के,
सिगरेट पीयैं धूवा फेकै छेलै,
फक फक चिंगारी देखी के।
रे वेकूफ कैन्है करी चापलै,
तोरा डंड आवै पाना छौ,
हम्में आवै नैहैं उतरबौं,
कासिये तक हीं जाना छौ।
रेल सिपाही दौड़ी के अैइलै,
लतियावै छै ई यात्री के,
अफरा तफरी मचियै गेलै
सजा मिललै कुविचारी के।