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समय में मोड़ / नवनीता कानूनगो

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 मैं आशाओं को अब दूध नहीं पिलाती।
केवल कोई थकी-हारी कविता पाती है मेरे स्तनों को हर रात।

मैं शायद फिर उस कक्ष में हो आई हूँ
जहाँ सड़क समय में मुड़ती है
छुपाने के लिए अपनी अनन्त पीड़ा से बच कर भागते प्रेमियों कों,
और बारिश रुकने का नाम नहीं लेती।

मैं एक पहचानी-सी महक लेकर घर लौटी हूँ --
मेरे कपड़ों में कोई जून का महीना है और हो तुम।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़