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भटके हैं तेरी याद में / देवी नांगरानी

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भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ।
तेरी नज़र के सामने खोये कहाँ कहाँ।

रिश्तों की डोर में बंधे जाते कहाँ कहाँ
उलझन में राहतें कोई ढूंढे कहाँ कहाँ।

ख़ाहिश की कै़द में सदा जीवन किया बसर
अब उसके रास्ते खुले जाके कहाँ कहाँ।

ऐ ज़िंदगी सवाल तू, तू ही जवाब है
तुझसे मिलन की आस में भटके कहाँ कहाँ।

क़दमों के क्यों मिटा दिये उसने निशां तमाम
हम उनकी पैरवी में भी जाते कहाँ कहाँ।

है दाग़ दाग़ दिल मेरा, मुस्कान होंठ पर
रौशन हुए हैं रास्ते, दिल के कहाँ कहाँ।

वो लामकां में रहता है, अपनी बिसात क्या
हम लामकां को ढूंढते फिरते कहाँ कहाँ।

‘देवी’ न मुझसे पूछिये कुछ ख़ुद को देखिये
होते है इस जहान में झगड़े कहाँ कहाँ।