भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चढ़ा था जो सूरज / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:22, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} चढ़ा था जो सूरज सदा वो ढला है<br> नई एक सु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चढ़ा था जो सूरज सदा वो ढला है
नई एक सुबह कोख में जो पला है।।

न शिकवा शिकायत न कोई गिला है
मिला जो ऐ किस्मत तुम्हीं से मिला है।।

ये मन दोस्त दुश्मन मेरा बन गया है
वही ढूँढे बाहर जो अन्दर बसा है।।

बड़ी बे वफ़ा जिन्दगानी को कहते
"वफ़ा" नाम बस मौत को ही अता है।।

न कर नाज ऐ मौत खुद पर भी इतना
सबक ज़िन्दगी से वफ़ा का मिला है।।