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माँओं की खोई लोरियाँ ढूँढ़ो / प्रेमरंजन अनिमेष
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माँओं की खोई लोरियाँ ढूँढ़ो
घर में बिखरी कहानियाँ ढूँढ़ो
मैं उजाला तलाश करता हूँ
तुम अन्धेरे में सीढ़ियाँ ढूँढ़ो
जिन क़िताबों को वक़्त पढ़ता है
उन क़िताबों की ग़लतियाँ ढूँढ़ो
पहली बून्दें पड़ी हैं बारिश की
अपनी काग़ज़ की कश्तियाँ ढूँढ़ों
पंख जिनके रखे थे पन्नों में
आखरों की वो तितलियाँ ढूँढ़ों
अबका बचपन बड़ा सयाना है
अब नई कुछ पहेलियाँ ढूँढ़ो
खिड़कियाँ रूह की तरफ़ खुलतीं
कोई तो ऐसा आशियां ढूँढ़ो
दिल ये सरकारी महकमा कोई
इसमें मत खोई अर्ज़ियाँ ढूँढ़ो
वो बहुत दूर जा चुका 'अनिमेष`
उसको अपने ही दरमियां ढूँढ़ो