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दमड़ी-दाढ़ी/ अमरेन्द्र
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नानी सेॅ गुहार
अंतर मंतर घोंघा-साड़ी
आँख की देखैं फाड़ी-फाड़ी ।
है ले देलियौ पैसा गाड़ी
हिम्मत छौ, तेॅ लहैं उखाड़ी
अंतर-मंतर घोंघा-साड़ी
भाँसी जाय बाबा रोॅ दाढ़ी ।
दाढ़ी-दमड़ी एक समान
निकलै नै, निकली जाय जान
दाढ़ी लागै जंगल-झाड़ी
वैं मेॅ मूँ बंगाल रोॅ खाड़ी ।
बाबा खैलकै एक सुपाड़ी
फसलै, लेलकै दाँत उखाड़ी
देलकै सौंसे मुँह बिगाड़ी
अंतर मंतर घोंघा-साड़ी
जान लेबैया दमड़ी-दाढ़ी ।