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होली / अमरेन्द्र
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फुर-फुर उड़लै रंग-अबीर
खो रे बुतरु पूओॅ-खीर
आय पढ़ै के नाम नै ले
कोय रंग माँगौ, दाम नै ले
जत्तेॅ छोड़बे, छोड़ें रंग
आपन्है में सब कर हुड़दंग
बड़का सेॅ नै लागियैं तोंय
कत्तोॅ तोहें छै बिडगोंय
बड़का केॅ जों बोलभैंµतुम
खैबे मुक्का धुम-धुम-धुम
अमरेन्दर नें खैलकै भांग
नाली में छै चार चितांग ।