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जाड़ / अमरेन्द्र
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गर्मी जेन्है केॅ गेलौ रे
देखैं ठंडा ऐलौ रे
चद्दर-कम्बल बाहर कर
ई भूतोॅ सें डर-डर-डर
दाँत कराबौ किट-किट-किट
बच्चा लेॅ ई नै छौ फिट
गुरुवे जी रङ दै छौ राग
बोरसी में कर जल्दी आग
गाँती बान्हैं, ओढ़ रजाय
दलकाबै छौ जाड़ कसाय
नानी तेॅ बनली छै थिर
दादी के कर फिकिर-फिकिर
सटली रहै छै मोखै सेॅ
मरतै दादी धोखै सेॅ ।