भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लुक्खी बनरिया / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:24, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=हँसी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लुक्खी बनरिया धूम मचाबै
बानर देखी केॅ चिचियाबै
होकरोॅ रूप निराला छै
धारी काला-काला छै
देह कटी टा पूँछ बड़ी
ताकै चहुँ दिश खड़ी-खड़ी
फुदकै चीं चीं करी-करी
खुशी से आ कि डरी-डरी
रहै छै पीपरोॅ गाछी पर
रिसियाबै छै माँछी पर
साथी चिड़िया मुनियाँ छै
गाछ-विरिछ ही दुनियाँ छै