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दूषित अन्न रोॅ प्रभाव / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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महाभारत युद्ध खत्म होय गेलोॅ छेलै
धर्मराज युधिष्ठिर केॅ सम्राट बनै नेॅ छेलै ।

भीष्म पितामह शरशय्या पर पड़लोॅ छेलै
आशा मेॅ अटकलोॅ पड़लोॅ छेलै ।

आभी सूर्य दक्षिणायण दिशा मेॅ छेलै
है तिथि दोष पूर्ण सेॅ भरलोॅ छेलै ।

सूर्य के उत्तरायण होवै के प्रतीक्षा मेॅ
साँस अटकलोॅ रुकलोॅ छेलै, प्रतीक्षा मेॅ ।

भीष्म रोॅ आज्ञा सें द्रोपदी उपस्थित ऐलै
दादा रोॅ धर्म उपदेश सुनै लेॅ उपस्थित होलै ।

युधिष्ठिर रोॅ कहला पर भीष्म नेॅ उपदेश देलकै
वर्ण, आश्रम, राजा-प्रजा रोॅ कत्र्तव्य बतैलकै ।

दादा धर्म उपदेश रोॅ कथा वाचेॅ लागलै
दादा रोॅ प्रवचन पर द्रौपदी केॅ हँसी लागी गेलै ।

‘‘बेटी ! तोहें हँसल्होॅ कैन्हें, हौ हमरा बतावोॅ’’
प्रवचन रोकी देलकै, सही-सही कारण बतावोॅ ।

‘‘दादा हमरा सेॅ भारी भूल होय गेलै ।’’
द्रौपदी संकुचित आरोॅ लज्जित होय गेलै ।

हिनकोॅ उत्तर सेॅ दादा केॅ संतुष्टि नै होलै
शीलवती, कुलवती के गुरुप्रति है भाव नै होलै ।

शीलवती, कुलवती भावोॅ केॅ त्याग करी देल्होॅ
अकारण हँसी रोॅ सही मतलब बताय देहोॅ ।

दोनोॅ हाथ जोड़ी केॅ दादा जी सें बोललै
‘‘अभद्रता बातोॅ केॅ क्षमा करी दोहोॅ तबेॅ बोललै ।

हमरा चीरहरण रोॅ बात अचानक मनोॅ में ऐलै
दुःशासन भरलोॅ सभा में साड़ी खीचें लागलै ।

हौ समय में दादा रोॅ धर्मज्ञान कहाँ छेलै
वहेॅ बात हमरा दिमागोॅ में कौंधे छेलै ।’’

द्रौपदी न दादा सें गिड़गिड़ाय केॅ क्षमा मांगलकै
हिनकोॅ बातोॅ केॅ दादा नें तर्जि देलकै ।

धर्मज्ञान छेलै, मतरकि दुर्योधन रोॅ अन्यायपूर्ण अन्न छेलै
वही मलीन अन्नोॅ रोॅ असर मनोॅ में छायलोॅ छेलै ।

द्यूत सभा में निर्णय करै में असमर्थ छेलियै
नस-नस में दूषित खून व्याप्त होय गेलोॅ छेलै ।

योद्धा वीर अर्जुन केरोॅ बाणोॅ सेॅ शरीर छलनी होय छेलै
तबेॅ शरीरोॅ रोॅ सब्भै रक्त निकली गेलै ।

आबेॅ हमरोॅ ज्ञान, बुद्धि सही रास्ता पर सवार छै
धर्म तत्व समझाय में आबेॅ दिक्कत नै छै ।