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पद-2 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
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ज्ञान-ध्यान नै हम्में जानौं महाअनाड़ी छौं
शरणागत केॅ पार लगैवोॅ गुरूजी तोरोॅ आदत छौं
एक लोहा पूजा-घर रहै, एक घर वधिक रहै
ई दुविधा पारस नै जानै कंचन करत खरै
एक नदिया, एक नाला कहावै गंगा जाय विलाय
वैसैं गुरूजी अबकी बेरिया हमरा लीहोॅ समाय ।